परिवर्तन ‘एकल विद्यालय’ क्या है, यह रा. स्व. संघ के करीब के लोगों को पता है. ‘एकल विद्यालय’ मतलब एक शिक्षकी शाला. वे कहा चलती है? जंगल में, दूर दराज के क्षेत्र में, जहॉं कोई भी शाला नहीं है और रही तो भी बच्चें नहीं जाते है, वहॉं. यह अतिशयोक्ति नहीं है. करीब बीस वर्ष पूर्व की बात होगी. हम कुछ लोग, झारखंड में से जा रहे थे. रास्ते में एक एकल विद्यालय को भेट, यह हमारे कार्यक्रम का एक भाग था. गॉंव सड़क से दूर नहीं था. गॉंव में शाला थी. मतलब शाला की इमारत थी. शिक्षक भी नियुक्त थे. लेकिन शाला चलती नहीं थी. कारण, विद्यार्थी वहॉं जाते नहीं थे. मैंने कारण पूछॉं तो पता चला कि, शाला सुबह १०.३० से ४.३० लगती है; और उसी समय गॉंव में के बच्चें , गाय-बकरियॉं चराने ले जाते है. लेकिन वहीं एकल विद्यालय चल रहा था. क्योंकि वह सायंकाल ६॥ से ९ तक लगता था. हमारे समक्ष ५५ विद्यार्थी उपस्थित किए गए. उनके पालक भी आए थे. उन ५५ में २३ लड़कियॉं थी. सब ने पहाड़े सुनाए. कुछ ने गीत भी गाए. इन सब के लिए केवल एक शिक्षक था. वह भी ९ वी उत्तीर्ण. वेतन केवल ५०० रुपये प्रतिमाह. मैंने पूछॉं, ‘‘इतने कम वेतन में तुम्हारा गुजारा कैसे होता है?’’ उसने कहा, ‘‘मेरा सिलाई का व्यवसाय है, यह मेरी अतिरिक्त आय है.’’ एकल विद्यालय ऐसे चलते है. संघ से संबंधित वनवासी कल्याण आश्रम द्वारा चलाए जाते है. इने-गिने नहीं. हजारों. केवल झारखंड में आठ हजार से अधिक एकल विद्यालय है. बच्चों को पढ़ाने के साथ ही इन एकल विद्यालयों का संपर्क हर घर से रहता है; और इस कारण वहॉं सामाजिक जीवन में भी इष्ट परिवर्तन हुआ है. यह केवल अर्थवाद नहीं. प्रत्यक्ष अनुभव है. किसका? – तामिलनाडु में की ‘टाटा धन ऍकेडमी’का. यह ऍकेडमी, बंगलोर के ‘आयआयएम्’ मतलब ‘इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मॅनेजमेंट’ इस विख्यात संस्था से संलग्न है. इस ऍकेडमी के प्राध्यापक डॉ. व्ही. आर. शेषाद्री के नेतृत्व में, उसके विद्यार्थीयों ने कुल ५०८ एकल विद्यालयों को भेट दी. वह आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड इन सात राज्यों में के थे. इन विद्यालयों ने वहॉं के समाज-जीवन में क्या परिवर्तन किए, यह देखना इस निरीक्षण-प्रकल्प का हेतु था. उन्होंने पाया कि, १) शाला अधूरी छोड़कर जाने वाले विद्यार्थीयों की संख्या कम हुई है. २) विद्यार्थीयों में अनुशासन का अहसास दिखा. ३) यह एकल विद्यालय, विद्यार्थीयों को नैतिक एवं मूल्याधारित शिक्षा भी देते है, विद्यार्थीयों के वर्तन पर इसका प्रभाव दिखा. ४) इन विद्यार्थीयों के वर्तन का उनके माता-पिता और समाज पर भी इष्ट परिणाम हुआ है. आज शहरीकरण के वातावरण से, गॉंव उजड रहे है और व्यक्ति अधिकाधिक आत्मकेन्द्रित बनकर अपने पारंपरिक जीवनमूल्यों से दूर जा रहा है. जिस गॉंव में एकल विद्यालय है, वहॉं की परिस्थिति इसके विपरित है. ५) औपचारिक शिक्षा के साथ खेल, कथाकथन, संगीत की शिक्षा का भी अतर्ंभाव होने के कारण, ऐसा देखा गया है कि, विद्यार्थीयों की समझ और स्मरणशक्ति भी बढ़ी है. ६) पालक, अपने पाल्यों को एकल विद्यालय में भेजना, अधिक पसंद करते है, ऐसा इस अभ्यास समूह ने पाया. ७) विद्यार्थीयों में देशभक्ति की भावना दिखाई दी. इस निरीक्षण के बाद बंगलोर की आयआयएम् ने, २ मई २०१२ को एक दिन का परिसंवाद आयोजित किया था. परिसंवाद का विषय था ‘‘एकल विद्यालयों के परिणाम के संदर्भ में समावेशक शिक्षा (इक्लुजिव् एज्युकेशन) और सामाजिक विषमता की भावना का क्षरण.’’