होशंगाबाद/भोपाल। होशंगाबाद से करीब 27 किलोमीटर दूर डोलरिया तहसील के ग्राम रतवाड़ा के एक कच्चे मकान के आंगन में बैठा हरेकृष्ण सूनी आंखों से आकाश की ओर ताक रहा है। आज उसके पिता की महीने की धूप की रस्म है। एक पखवाड़े पहले ही 12 अक्टूबर को उसके पिता रामसिंह राजपूत ने कर्ज के बोझ तले खुदकुशी कर ली थी। इस रस्म के बाद हरेकृष्ण घर से बाहर कहीं भी आ-जा सकेगा। लेकिन क्या वह अपने उस खेत में भी जाना पसंद करेगा, जहां कुछ दिन पहले ही सोयाबीन की लहलहाती फसल मुरझा गई थी? नहीं। क्योंकि उसके पास गेहूं की बुवाई के लिए न तो साधन हैं और न ही पैसा। उसे अब कर्ज भी नहीं मिलेगा, क्योंकि पिता रामसिंह कर्ज चुकाए बगैर ही इस दुनिया से चले गए।
रामसिंह अकेले नहीं हैं। बीते 20 दिनों में होशंगाबाद जिले में तीन किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इन किसानों ने इसलिए मौत को गले लगाया, क्योंकि सोयाबीन बर्बाद होने के बाद उन्हें कर्ज के जाल से निकलने का और कोई चारा नजर नहीं आया। इस संवाददाता ने क्षेत्र की डोलरिया और सिवनी मालवा तहसीलों (जहां के तीन कृषकों ने खुदकुशी की) के अनेक किसानों से बात की तो यह तस्वीर नजर आई कि इस क्षेत्र का संपन्न से संपन्न किसान भी कर्ज के बोझ से लदा है।
ग्रामसेवा समिति के लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि किसान सरकारी बैंक और सोसाइटियों के ही नहीं, बल्कि साहूकारों के जाल में भी फंसे हैं। साहूकार कीटनाशक और बीज उधार देकर फिर प्रति सैकड़ा दो से तीन रुपए प्रति माह का ब्याज वसूल कर रहे हैं (इस तरह सालाना ब्याज की दर 24 से 36 फीसदी हो जाती है)। विडंबना यह है कि होशंगाबाद जिला प्रदेश का सर्वाधिक कृषि उत्पादकता वाला जिला है।
बढ़ता कृषि संकट!
सरकारी दावों के अनुसार वर्ष 2009-10 में होशंगाबाद जिले में उत्पादकता 1100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी, जो वर्ष 2010-11 में बढ़कर 1494 किलोग्राम हो गई है। यह बढ़ोतरी करीब 36 फीसदी से भी ज्यादा है। लेकिन इस क्षेत्र में कार्यरत समाजवादी जन परिषद द्वारा तैयार की गई एक रपट के अनुसार क्षेत्र में वर्ष 1994 की तुलना में उत्पादकता में 73 फीसदी तक की गिरावट आई है। परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुनील कहते हैं कि यह बहुत बड़े संकट का सूचक है, क्योंकि इस क्षेत्र में सोयाबीन की लगातार खेती के कारण अब अन्य फसलें नहीं हो सकती। इसलिए यहां कृषि का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है।
4 दिन, तीन खुदकुशी
केस 1 : कमल गौर (ग्राम नानपा, डोलरिया तहसील)। इन्होंने 11 अक्टूबर को सल्फास की गोली खाकर आत्महत्या की।]
केस 2 : रामसिंह राजपूत (ग्राम रतवाड़ा, डोलरिया) 62 वर्षीय किसान ने 12 अक्टूबर को खुदकुशी की।
केस 3 : मिश्रीलाल बेड़ा (चापड़ाग्रहण गांव, सिवनी-मालवा)। 54 वर्षीय किसान ने 14 अक्टूबर को खुदकुशी की।
प्रशासन ने गुरुवार को ही उन किसानों को फसल बीमा की राशि उनके खातों में जमा करवाने का फैसला किया है, जिनकी सोयाबीन की फसल बर्बाद हो गई है। करीब 17 करोड़ रुपए मुआवजे के रूप में दिए जाएंगे। जहां तक किसानों के कर्ज का सवाल है, यह कृषि संबंधी कर्ज नहीं है। अगर किसान व्यक्तिगत जरूरतों के लिए कर्ज लेता है तो उसके लिए दूसरा कैसे जिम्मेदार हो सकता है? निशांत बड़बड़े, कलेक्टर, होशंगाबाद