शोधकर्ताओं के अनुसार दूध पीने से दिमागी ताकत बढ़ जाती है। एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कहा है कि इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि दूध दिमाग को तरोताजा रखते हुए व्यक्ति को समय से पहले वृद्ध होने से बचाता है। उम्र चाहे कितनी भी हो, अगर आप अपने मानसिक कौशल को बेहतर करना चाहते हैं तो रोजाना कम से कम एक ग्लास दूध जरूर पिएं।
इंटरनेशनल डेयरी जर्नल की खबर के अनुसार, इस अध्ययन में कहा गया है कि रोजाना एक ग्लास दूध पीने से शरीर में न केवल जरूरी पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है बल्कि दिमागी ताकत और प्रदर्शन भी अच्छा होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, दूध में मौजूद मैग्नेशियम जैसे पोषक तत्वों से स्मरण शक्ति अच्छी होती है। दूध और दुग्ध उत्पाद दिल की बीमारियों और उच्च रक्तचाप की समस्याओं से भी बचाए रखने में मददगार होते हैं। इसके नियमित सेवन से दिमाग बेहतर तरीके से काम करता है। माइन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पता लगाया कि अधिक दूध और दुग्ध उत्पादों का सेवन करने वाले वयस्कों का दिमाग और स्मरण शक्ति कम दूध पीने वालों या दूध ना पीने वाले लोगों की तुलना में कहीं बेहतर होती है। मां के साथ से बढ़ता है बच्चे का दिमाग लंदन : जीवन में तनाव अथवा दुख की घडी के समय जिन बच्चों को मां का समर्थन मिलता है, बाद में उनका मस्तिष्क भी तेज होता है। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि बचपन में जिन बच्चों पर माताएं अधिक ध्यान देती हैं और सुख-दुख की घडी में उनके साथ होती हैं उनके मस्तिष्क में याददाश्त और भावनाओं में मुख्य भूमिका निभाने वाले क्षेत्र हिप्पोकेंपस की स्नायु कोशिकाएं अधिक विकसित होती हैं। अध्ययन में हालांकि यह साबित नहीं हुआ कि माता के व्यवहार से मस्तिष्क के आकार में सुधार आता है। हालांकि यह संकेत मिला कि बच्चे का साथ निभाना उसके मस्तिष्क के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अध्ययन में 92 बच्चों पर स्कूल जाने से पहले से लेकर गे्रड स्कूल तक अध्ययन किया गया। मस्तिष्क के स्कैन से पता लगा कि जिनके माता-पिता ने तनाव कम करने में अधिक साथ बच्चों का दिया उनका हिप्पोकेंपी अधिक बड़ा निकला। साथ ही जिन बच्चों में अवसाद के लक्षण जल्द पाए गए उनमें इसका प्रभाव काफी कम देखा गया। इसका अर्थ हुआ कि उन्हें मां का अधिक समर्थन नहीं मिला। प्रोसिडिंग्स आफ द नेशनल अकादमी आफ साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन के अगुआ प्रो. जॉन लुबे के अनुसार, हमारा मानना है कि यह नतीजा जन स्वास्थ्य प्रभाव को दर्शाता है। यह इस बात पर जोर देता है कि शुरू के जीवन में बच्चे पर ध्यान देना सार्थक सामाजिक निवेश है।