इंदौर संभाग का सेमलिया गाव आज विकास की कहानी को बयां कर रहा है कुछ समय पहले तक यह गांव पानी की समस्या से जूझ रहा था लेकिन आज यहां पर पानी ही पानी है। मध्यप्रदेश शासन की योजना बलराम ताल के तहत यहां 250 तालाबों का निर्माण किया गया। तालाबों की योजना ने जल संरक्षण को किसानी से जोड़ दिया है। इंदौर संभाग के नेमावर रोड़ पर खुड़ेल पार करते ही पानी वाले गांवों की कहानी शुरू हो जाती है। गांव को जाने वाली हर पगडंडी पर पानी से लबालब छोटे-बड़े तालाब नजर आते हैं। कहीं एक साथ 10 ताल बने हैं, तो कहीं तालों के बीच खेत में फसल लहलहाती नजर आती है। इस क्षेत्र में चारों ओर 250 तालाब हैं और चारों तरफ हरियाली दिखाई देती है। जल संरक्षण का नया अंदाज है। पिछले कुछ वर्षों से कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही ‘बलराम ताल’ योजना के प्रति यहां के किसान खासे उत्साहित हैं। नतीजा यह है कि दर्जन भर गांव में 500 से अधिक ताल तैयार हो चुके हैं। किसान कल्याण व कृषि विभाग इंदौर के सहायक उपसंचालक आरएस गुप्ता ने बताया कि योजना की शुरूआत 2007-08 में हुई थी। विभाग के सर्वेयर ने किसानों को इस योजना के बारे में जानकारी दी, तो उन्होने इस योजना में काफी रूचि दिखाई। अब जो किसान पहले एक फसल भी मुश्किल से ले पाते थे, वर्तमान में दो से तीन फसलें ले रहे हैं। इतना ही नहीं, अब तो इस क्षेत्र का जल स्तर भी पहले से बेहतर हो गया है। गावं के किसान मलखान सिंह तोमर बताते है कि मैने अपनी 40 बीघा जमीन के लिए 2 ताल खुदवाए है। ताल बनने से पहले एक फसल भी मुस्किल से होती थी लेकिन जब से ताल बने है हर वर्ष कम से कम दो फसल ले रहा हूँ। ट्यूबवेल जो पहले 250 फीट तक गहराई में जाकर भी दम तोड़ देते थे, अब 120 फीट पर बोरिंग हो रही है, जो मार्च तक किसानों की प्यास बुझा रहे हैं। बलराम ताल योजना किसानों में काफी लोक प्रिय हुई है। अब तक जिले में 700 से अधिक तालाब बनाए जा चुके हैं। अकेले सेमलिया रायमल ग्राम में ही 250 से अधिक तालाब हैं। सेमलिया गांव के किसान प्रकाश दांगी कहते है कि जब ताल नहीं थे तो सबसे ज्यादा बिजली की समस्या बनी रहती थी लेकिन अब जब मर्जी हो ताल से डीजल पंप लगाकर पानी फेर देते है। यह पूरे प्रदेश के लिए बड़ा उदाहरण है। किसान कल्याण व कृषि विभाग इंदौर के उपसंचालक आलोक मीणा ने बताया कि बलराम ताल योजना किसानों में काफी लोकप्रिय हुई है। अब तक जिले में 700 से अधिक तालाब बनाए जा चुके है। अकेले सेमलिया रायमल ग्राम में ही 250 से ज्यादा तालाब है। तालाबो के निर्माण से लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है किसान वासुदेव दांगी कहते है 40 बीघा जमीन के लिए 3 ताल खुदवाएं है। इससे अब हर वर्ष तीन फसल ले रहा हूँ, पहले से आर्थिक स्थिति बेहतर हो गई है। फायदा भी दोगुना हो गया है।
गांवों में तालाबों की परंपरा रही है। यह पर्यावरण और आर्थिक सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी करता था। एक बार फिर आवश्यक है कि गांवों, कस्बों और नगरों में छोटे-बड़े तालाब बनाकर वर्षा जल का संरक्षण किया जाए। निश्चय ही जल संरक्षण आज के विश्व और कृषि-समाज की सर्वोपरि चिन्ता बन चुकी है। लेकिन समाज परिस्थितियों के वश सब कुछ भूल कर प्रकृति के सन्तुलन को ही बिगाड़ने पर तुला हुआ है। राष्ट्रीय विकास में जल की महत्ता को देखते हुए अब जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर हर जगह कारगर जल संरक्षण को आकार देने की आवश्यकता है। जल संरक्षण के कुछ परंपरागत उपाय तो बेहद सरल और कारगर रहे हैं। तालाब इनमें से एक है। मध्यप्रदेश में पानी वाले गांवों का होना परंपरा और सरकार दोनों की विजय है।