संजय गुप्ता
मुश्किलें राह में लाख सही, लेकिन उनसे लड़कर जीतना ही जिंदगी जीने की कला है। कुछ ऐसी ही सीख एन. चोक्कन की किताब ‘कॉरपोरेट गुरु नारायण मूर्ति’ को पढ़ते-पढ़ते ही जीवन का हिस्सा बनने लगती है। चोक्कन ने इस किताब को 15 भागों में बांटते हुए 144 पन्नों में समेटा है। किताब में उनके हर सुख-दुख, परीक्षा को सामने लाते हुए हर पल से कुछ सीख लेने की जज्बा दिखाया गया है। किताब भले ही नारायण मूर्ति के व्यक्तित्व को सामने लाने के लिखी गई है, लेकिन इसमें उनके दोस्तों के साथ ही उनकी जीवनसंगिनी सुधा नारायणमूर्ति के त्याग, हर पल में पति का साथ देने जैसी सीखें भी अनायस ही शामिल है।
एक बार क्लास में चौथे स्थान आने पर नारायणमूर्ति तो खुश थे,लेकिन पिता ने कहा कि पहला क्यों नहीं, तुमसे आगे तो तीन थे। इसी से नारायण मूर्ति को जीवन में प्रथम आने की प्रेरणा मिली। बु्ल्गारिया पुलिस द्वारा शंका होने पर उन्हें 60 घंटे तक गिरफ्तार रखने की घटना ने उनके जीवन को बदल दिया और पैसे कमाने के लिए प्रेरित किया। अपनी जीवनसंगिनी सुधा से 10 हजार रुपए उधार लेकर सात दोस्तों के साथ किस तरह चरणबद्ध तरीके से इंफोसिस का विकास कर उसे देश-विदेश तक पहुंचाया यह बड़े व्यवस्थित तरीके से छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से किताब में बताया गया है। अपनों को लाभ नहीं देने का भी एक अनूठा उदाहरण किताब में है। एक दिन सुधा नारायण मूर्ति के पास गई और इंफोसिस में काम करने की इच्छा जताई। इस पर नारायणमूर्ति ने कहा कि इस कंपनी में या तो मैं रह सकता हूं या आप। कारण है कि मूर्ति नहीं चाहते थे कि कंपनी में अपनों को लाने की पंरपरा चले। समाज के चलते बड़ा व्यक्ति बनने पर समाज को लौटाना भी चाहिए, यह एक महत्वपूर्ण सीख इस किताब में है। नारायणमूर्ति का विस्तृत साक्षात्कार और कुछ चुनिंदा फोटो का संग्रह है। इसमें नारायणमूर्ति अपने परिवार व दोस्तों के साथ है। एक फोटो है जिसमें नारायणमूर्ति सीढिय़ों से उपर चढ़ रहे हैं और पीछे इंफोसिस लिखा हुआ है जो प्रतिबिंब है इस बात का कि इंफोसिस एक-एक कदम आगे बढ़ते हुए आज इस मुकाम पर पहुंची है।