परमाणु वैज्ञानिक डॉ. अनिल काकोडकर से खास बातचीत
दक्षिण भारत के कुडमकुलम में परमाणु अनुसंधान केंद्र के बाद मध्यप्रदेश के मंडला जिले में बन रहे केंद्र के विरोध के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ हो सकता है। ऐसी आशंका है, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र मुंबई के पूर्व अध्यक्ष एवं पद्म विभूषण डॉ. अनिल काकोडकर की।
वे कहते हैं, कुछ विदेशी ताकतें नहीं चाहती की भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो। साथ ही वे ये भी जोड़ते हैं कि स्थानीय स्तर पर कई बार भ्रम की वजह से भी इसका विरोध होता है। कड़ी सुरक्षा के घेरे में एक दिन के प्रवास पर भोपाल आए देश के ख्याल परमाणु वैज्ञानिक डॉ. काकोडक़र से जन जन जागरण के आशीष भट्ट ने विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। उनसे हुई चर्चा के प्रमुख अंश इस प्रकार हैं-
कुडमकुलम प्रोजेक्ट के बाद चुटका में परमाणु अनुसंधान केंद्र का विरोध। इसके पीछे आप किसे देखते हैं?
जवाब:- दरअसल कुछ विदेशी ताकतें नहीं चाहती हैं कि भारत परमाणु अनुसंधान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनें। वे इसके लिए भ्रम और अफवाह फैलाते हैं, जिससे अनभिज्ञ स्थानीय लोग भ्रम के चलते विरोध करने लगते हैं। जिस वजह से कुडमकुलम प्रोजेक्ट का विरोध हुआ उसकी परमाणु वैज्ञानिकों की टीम ने जांच कर सौ फीसदी सुरक्षित बताया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट को सुरक्षित माना और हरी झंडी दी।
परमाणु ऊर्जा कितनी जरूरी है?
जवाब: वर्तमान दौर में ऊर्जा की जरूरतें पूरी करने के लिए परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना जरूरी है। इसके लिए युवाओं को जिम्मेदारी उठाने आगे आना चाहिए।
लोग क्यों स्थानीय स्तर पर विरोध के स्वर उठा रहे हैं?
जवाब : परमाणु संयंत्र स्थापित करते वक्त सुरक्षा का सौ फीसदी ध्यान रखा जाता है। चुटका प्रोजेक्ट भी पूरी सुरक्षा के साथ स्थापित किया जाएगा। इसके बावजूद लोगों में भ्रम की स्थति हैं। पूरी जानकारी का अभाव है और कुछ लोगों का काम ही विरोध करना इसलिए सिर्फ विरोध के लिए विरोध किया जा रहा है। जिसमें कुछ एनजीओ सहयोग कर रहे हैं।
लोगों का कहना है कि विकरण उत्सर्जन से गंभीर खतरा होगा?
जवाब: परमाणु संयंत्र में अगर कोई व्यक्ति रोज 24 घंटे भी काम करें तो विकरण का खतरा 1 प्रतिशत से कम होगा। जापान का डर दिखाकर विरोध किया जा रहा है, जबकि जापान हादसे की परिस्थति दूसरी थी, वहां सुनामी की वजह से संयंत्र नष्ट होने के बाद विकरण फैला है। भारत के परमाणु केंद्र सुनामी के खतरे से बाहर हैं।
युवाओं को क्या संदेश देना चाहते हैं?
जवाब: एनजीओ क्षेत्र के अलावा रिसर्च व डेवलपमेंट में बहुत सी संधिया उपलब्ध हैं, उन पर अध्ययन कर कुछ नया करने की कोशिश करें, आने वाले समय में आईआईटी व एनआईटी में रिसर्च पर बहुत अधिक जोर दिया जाएगा। पीएडी प्रोग्राम भी बढ़ेंगे, इन पर छात्र ध्यान केंद्रित करें, ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी रिसर्च को बेहतर बनाए।
देश में हो रही रिसर्च पर कुछ कहेंगे ?
जवाब:- भारत में रिसर्च तो बहुत हो रही है, पर इसकी गुणवत्ता में सुधार किये जाने की जरूरत है। रिसर्च अच्छी हो तो जांब की कमी नहीं है।
साभार : जन जन जागरण