17 फरवरी को 4:30 बजे टीटीटीआई सभागार में श्री गोविंदाचार्य और डा. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी का संबोधन
भोपाल। राष्ट्रवादी चिंतक और प्रख्यात विचारक श्री के.एन. गोविन्दाचार्य 17 फरवरी को एक संवाद कार्यक्रम को संबोधित करेंगे। इस कार्यक्रम में विभिन्न धारावाहिकों और अनेक फिल्मों के निर्माता-निर्देशक डा. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्यक्षेत्र प्रचारक श्री रामदत्त चक्रधर करेंगे। इस संवाद कार्यक्रम में अग्रणी समाज वैज्ञानिक एवं विकास अर्थशास्त्री प्रो. कुसुमलता केडिया का विशेष वक्तव्य होगा। एनआईटीटीटीआर सभागार में सायं 4:30 बजे से आयोजित इस कार्यक्रम में पत्रकार और मीडिया एक्टीविस्ट अनिल सौमित्र की पुस्तक ‘पूर्वाग्रह‘ का लोकार्पण भी होगा।
धर्मपाल शोधपीठ के निदेशक प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज और स्पंदन संस्था के अनिल सौमित्र ने बताया कि इस संवाद कार्यक्रम में सभी विद्वान वक्ताओं द्वारा ‘वैश्वीकरण : समाज और संस्कृति’ के ऐतिहासिक संदर्भों और वर्तमान स्थिति का विश्लेषण किया जायेगा। उल्लेखनीय है कि उदारीकरण, बाजारीकरण, खुली अर्थव्यवस्था. आर्थिक सुधार के विभिन्न नामों से वैश्वीकरण हमारे आसपास, हम सभी के घरों में पांव पसार चुका है। वैश्वीकरण का दायर सिर्फ आर्थिक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान मिटाने पर उतारू है। वैश्वीकरण के नाम पर हमारा अमेरीकीकरण कर दिए जाने का आंतरिक और बाह्य प्रयास हो रहा है। भारतीय समाज, परंपरा और संस्कृति के समक्ष यह वैश्वीकरण एक चुनौती के रूप में विद्यमान है। इस संवाद कार्यक्रम में श्री गोविंदाचार्य जहां वैश्वीकरण के राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों पर विशेष प्रकाश डालेंगे, वहीं डा. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी संस्कृति पर वैश्वीकरण के प्रभावों का विशेष उल्लेख करेंगे। प्रो. कुसुमलता केडिया वैश्वीकरण के आर्थिक पक्षों पर अपने सुदीर्घ अध्ययनों को साझा करेंगी।
चूंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार से अधिक समाज और व्यक्ति को परिवर्तन का माध्यम मानता है, इसलिए संघ के क्षेत्र प्रचारक श्री रामदत्त चक्रधर वैश्वीकरण के नकारात्मक प्रभावों से बचने-बचाने के सामाजिक और वैयक्तिक प्रयासों की चर्चा करेंगे। प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए बताया कि अकादमिक और बौद्धिक क्षेत्र में मूल्यों और मुद्दों पर सतत विमर्श की जरूरत है। यह संवाद इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। इस संवाद में विभिन्न अकादमिक संस्थाओं, स्वैच्छिक संगठनों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ ही वरिष्ठ पत्रकार और लेखक भी भागीदारी करेंगे। आयोजक संस्थाओं ने बौद्धिक क्षेत्र के सभी व्यक्तियों से विचारधारा, संगठन और व्यक्तिगत आग्रहों से ऊपर उठकर इस कार्यक्रम में भागीदारी करने का आग्रह किया है।