शहद सी मीठी है अनिता की गाथा

– धनंजय मिश्रा, मुजफ्फरपुर

मजदूर की बेटी मधुमक्खी पालकर गल गई बन गई शहद की रानी। पाठ्यपुस्तक में शामिल की गई है सालाना चार लाख रुपए का कारोबार करने वाली अनिता की कहानी।

अनिता सिंह का बचपन बकरी चराते बीता होता और अपने समुदाय की अन्य लड़कियों की तरह वह भी छोटी उम्र में ब्याह दी गई होती, लेकिन मजबूत इरादों वाली महत्वाकांक्षी अनिता (22 वर्ष) अब एमए अंतिम वर्ष में है और शहद का सालाना चार लाख रुपए का कारोबार चला रही है। उसकी कहानी को एनसीईआरटी ने चौथी की पाठ्यपुस्तक में उसी की जुबानी शामिल किया है। यूनिसेफ ने 2006 में उसे स्टार गर्ल चुना था। बोचहा प्रखंड के पटियासा जालान गांव में अनिता के मजदूर पिता जनार्दन सिंह तो यही चाहते थे कि उनकी बेटी भी समुदाय की अन्य लड़कियों की तरह जिए, लेकिन छह साल की अनिता ने एक शिक्षक की मदद से माता-पिता को खुद को स्कूल भेजने के लिए राजी कर लिया। इसके बाद पढ़ाई का खर्च निकालने केलिए अनिताने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। गांव के लीची बागानों में मधुमक्खी पालने वाले आते थे। मधु खाने के लिए वहां जाने वाली अनिता उनके कामों में हाथ भी बंटा देती थी। इस तरह उसने जल्दी ही मधुमक्खी पालन के तौर-तरीके सीख लिए। साल 2002 में उसने ट्यूशन से मिले पांच हजार रुपए और मां रेखा देवी की छोटी सी मदद से मधुमक्खियों के दो बक्से और दो रानी मधुमक्खियों के साथ अपना कारोबार शुरू किया। कुछ ही महीनों में उसे अच्छा मुनाफा होने लगा। अब तो उसके पिता भी मजदूरी छोड़कर उसी के साथ आ गए हैं। अनिता ने सिर्फ अपनी तरक्की नहीं की, उसने सैकड़ों महिलाओं को मधुमक्खी पालन के लिए प्रेरित किया। अनिता का अनुसरन कर दर्जनभर गांवों की महिलाएं आत्मनिर्भर हो चुकी है। उसकी सफलता देख लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं।

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