फसल न गलेगी, न सूखेगी, बीमारियां भी होंगी कम
मध्यप्रदेश : किसानों का पीला सोना सोयाबीन की फसल अब ज्यादा पानी में न गलेगी और न ही कम पानी में सूखेगी।मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के रफी अहमद किदवई एग्रीकल्चर कालेज के वैज्ञानिकों ने इसकी एक नई किस्म इजाद की है। इस पर कीड़ों का असर कम होगा। उत्पादन भी पहले के मुकाबले 15 फीसदी ज्यादा होगा। यह किस्म आरवीएस 2001-4 नाम से जानी जाएगी। केंद्रीय कृषि मंत्रालय की सेंट्रल सीड रिलीज कमेटी ने भी इस बीज को अधिसूचित कर दिया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इससे प्रति हेक्टेयर 6 क्विंटल ज्यादा उत्पादन होगा। आने वाले खरीफ सीजन में यह किस्म प्रयोग के तौर पर किसानों को बोवनी के लिए उपलब्ध होगी। प्रदेश में पिछले साल भारी बारिश की वजह से सोयाबीन की 30 फीसदी फसल बर्बाद हो गई थी।
90 दिन में पक जाएगी फसल
सोयाबीन की मौजूदा किस्में 335, 9305 और 9560 हैं। ये 100 से 102 दिन में तैयार होती हैं। नई किस्म 90 दिन में पककर तैयार होगी। फिलहाल सोयाबीन का औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर 20 से 22 क्विंटल है। यह किस्म 26 से 28 क्विंटल पैदावार करेगी। पौधों का पीला हो जाना, जड़ सड़न रोग और इल्ली का इस किस्म पर कम प्रभाव रहेगा।
10 साल के रिसर्च का नतीजा :
आरएके कॉलेज के वैज्ञानिक डॉ. एसआर रामगिरी ने बताया कि इसे तैयार करने में करीब दस साल का समय लगा। रिसर्च टीम में डॉ. एमडी व्यास, डॉ नंदा खांडवे, डॉ. मौली सक्सेना भी शामिल रहे। प्रो. रामगिरी ने बताया कि इसकी पत्ती मध्यम है। शाखाएं तीन से चार और फूल सफेद आते हैं। फली चिकनी रहेगी। बीज गहरा पीला, पौधे की ऊंचाई 50 से 60 सेमी रहेगी।
कृषि विशेषज्ञ देवेंदर शर्मा ने बताया कि सोयाबीन की खेती में किसानों का रुझान बढ़ाने के लिए सरकार को पॉलिसी लानी होगी। इसमें किसान के फायदे का ख्याल रखना होगा। ताकि वह बीजों और तकनीक के अपग्रेडेशन से ज्यादा से ज्यादा फसल ले सके। इसका यह परिणाम होगा कि किसान उन्नत बीज का इस्तेमाल करेंगे।
साभार: दैनिक भास्कर
From where we can get this seed
ये वेराइटी कहा से प्राप्त कर सकते मुझे ये वेराइटी खरीदनी हे