श्वेता राजेंद्र जैन
जब से कांग्रेस के एक बड़े नेता पृथ्वीराज चौहान ने वक्तव्य दिया है कि सरकार को मंदिरों का दान जप्त कर लेना चाहिए । तब से मन बहुत विचलित है। क्यों भाई सरकार कौन होती है, दान का पैसा लेने वाली! क्या वह पैसा सरकार ने दिया था मंदिरों को जनता सरकार को अपनी गाढ़ी कमाई का हिस्सा कर या टैक्स के रूप में देती है। जिससे, सरकार उसे कुछ बुनियादी सुविधाएं सरकार उसे कुछ बुनियादी सुविधाएं और सुरक्षा प्रदान करें वैसे भी एक बार दिया गया दान कोई भी वापस नहीं ले सकता । स्वयं देने वाला भी ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा गया है । यदि हिंदुस्तान की आम जनता से इस मुद्दे पर एक पर टिप्पणी मांगी जाए तो वह कहेंगे बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला।
खैर ! हम थोड़े से शिक्षित हैं इसलिए उस तरह अपने विचार व्यक्त करते हैं । मंदिरों में दिया जाने वाला दान या चढ़ावा स्वेच्छा से बहुत अच्छी भावना के साथ दिया जाता है और उसका उद्देश्य होता है कि दान के उस पैसे का उपयोग अच्छे कामों में हो । हमारे शास्त्रों में भी दान का बहुत अधिक महत्व बताया गया है । आपकी जानकारी के लिए मैं बताना चाहती हूं कि दान चार प्रकार का होता है – 1. अभय दान यह प्रथम प्रकार का दान है सामान्य भाषा में इसे जीवनदान भी कहा जाता है। पहले इस प्रकार के दान का अधिकार राजा को होता था । वर्तमान में भी इस प्रकार के दान का अधिकार हमारे महामहिम राष्ट्रपति जी को प्राप्त है । 2. ज्ञानदान : किसी भी प्रकार की शिक्षा या कला को सिखाना इस प्रकार के दान के अंतर्गत आता है । शिक्षा या कला को सिखाना इस प्रकार के दान के अंतर्गत आता है। 3: औषधी दान: किसी भी बीमार व्यक्ति का इलाज कराना उसकी दवाइयों का प्रबंध करना और उसकी सेवा करना इस प्रकार के दान में शामिल है । 4. आहार दान : किसी भी भूखे व्यक्ति या जानवरों को भोजन कराना इस दान के अंतर्गत आता है । भाषा और विज्ञान के विकास के साथ-साथ कुछ और दान अस्तित्व में आए । इनमें रक्तदान, देहदान, अंगदान और श्रमदान प्रमुख हैं । प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हर व्यक्ति अपनी अपनी क्षमता के अनुसार मंदिरों में दान करता है और अपेक्षा भी करता है कि उपरोक्त वर्णन के आधार पर उसके पैसे का सदुपयोग हो।
हमारे देश के कुछ महानुभाव इस मान्यता में भी विश्वास करते हैं कि दान इस प्रकार से दिया जाना चाहिए कि एक हाथ से दो तो दूसरे को भी पता ना चले। इसलिए तो भारत में गुप्त दान का चलन भी बहुत अधिक है । मंदिरों के इसी चढ़ावे से मंदिरों का जीर्णोद्धार वहां के कर्मचारियों का वेतन और बहुत धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियां संचालित होती हैं, जैसे – दिल्ली में लाल किले के सामने एक जैन मंदिर है, जिसे लाल मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसी मंदिर में पक्षियों का एक बहुत बड़ा अस्पताल है। बीमार पक्षियों को वहां लाकर उनका इलाज कराया जाता है। डॉक्टर भी अपनी सेवाएं देते हैं । इन सब खर्चों का प्रबंध मंदिर ट्रस्ट की ओर से किया जाता है ।
यह तो हो गई बड़े शहर की बात । अब मैं मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर सागर की बात बताती हूं । यहां मोराजी के नाम का मशहूर गुरुकुल है । यहाँ बहुत से गरीब बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं । कई बच्चों ने यहां से निकल कर अपने जीवन में बहुत बड़ी-बड़ी सफलताएं प्राप्त की है। हिंदुस्तान के गुरुद्वारों में लंगर की परंपरा वर्षों से चली आ रही है । यहाँ बिना जाति-पाति पूछे हर व्यक्ति को बड़े प्रेम और आदर के साथ भोजन कराया जाता है ।
कोविड-19 काल में आहार दान के लिए इन गुरुद्वारों का योगदान अविस्मरणीय है । कोरोना वायरस के समय कई मंदिरों, जैसे-सोमनाथ मंदिर,कांची मठ, शिर्डी मंदिर जैसे कई मंदिरों ने अपनी क्षमता के अनुसार प्रधानमंत्री राहत कोष में बहुत दान दिया । यह मंदिर भी सरकार की तरह जनता की मदद कर रहे हैं । फिर इनके पैसों पर सरकार की नजर क्यों! बलपूर्वक लिए गए पैसों से किसी का भला नहीं हो सकता । इसलिए ऐसा करना तो दूर सरकार को ऐसा कुछ सोचना भी नहीं चाहिए ।