राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा, अतीत के संकल्पों की समीक्षा और शताब्दी वर्ष की तैयारी प्रमुख विषय

विश्व के सबसे विशाल सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रतिनिधि सभा की बैठक 12,13 और 14 मार्च को हरियाणा में हो रही है । संघ की इस बैठक में जहाँ पिछली बैठकों के प्रस्तावों और संकल्पों के क्रियान्वयन में प्रगति की समीक्षा होगी वहीं वर्तमान चुनौतियों के बीच भारत कैसे आत्म निर्भर बने, इस विषय पर भी चर्चा हो सकती है । 2025 में संघ अपनी संगठन यात्रा के सौ वर्ष पूरे कर रहा है । प्रतिनिधि सभा की इस बैठक में इन दो वर्षों की कार्य योजना को भी अंतिम रूप दिया जा सकता है ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वर्ष में दो प्रमुख बैठकें होती हैं। एक दशहरा-दीपावली के बीच कार्यकारी मंडल और दूसरी वर्ष प्रतिपदा के आसपास यह प्रतिनिधि सभा की बैठक । इस वर्ष प्रतिनिधि सभा की यह बैठक पिछली अन्य बैठकों से थोड़ा अलग है । इसमें परंपरानुसार बीते वर्ष के कार्यों और आगामी वर्ष के कार्य लक्ष्य पर तो चर्चा होगी ही साथ ही शताब्दी वर्ष के की कार्य योजना में सामने आयेगी। काम करने केलिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपनी शैली है । राष्ट्र और सांस्कृतिक केलिये धरातल पर सेवा कार्य संघ की प्राथमिकता में होता है इसीलिए शताब्दी वर्ष के आयोजन केवल उत्सव आधारित नहीं होंगे अपितु सेवा और संकल्प के आधर पर कार्य विस्तार का होगा । संघ ने इसकी तैयारी बहुत पहले ही करदी होगी । देश भर से संघ के प्रतिनिधि बस्ती से लेकर जिला, प्रांत और क्षेत्रीय आधार पर कार्य योजना बनाकर पहुँचेंगे । इस प्रतिनिधि सभा की विधिवत बैठक तो 12 मार्च से आरंभ होगी होगी । परंतु अनौपचारिक बैठकों का क्रम तो होली के तुरन्त बाद आठ मार्च से ही आरंभ हो जायेगा । आठ मार्च पहली बैठक में सभी केंद्रीय पदाधिकारियों के शामिल होंने की संभावना है जो अपने अपने क्षेत्र की कार्य प्रगति और क्रियान्वयन के व्यवहारिक पक्ष पर चर्चा करेंगे । अगले दिन नौ मार्च की बैठक में सरसंघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले सहित केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य, देशभर के सभी क्षेत्र प्रचारक, क्षेत्र कार्यवाह एवं उनके सहयोगी भाग ले सकते हैं। 10 मार्च की बैठक में सभी प्रांतों के कार्यवाह, प्रांत प्रचारक एवं उनके सहयोगी भाग लेंगे। इसके बाद क्षेत्रीय पदाधिकारियों की समूह बैठकें होंगी । फिर 12 मार्च से औपचारिक प्रतिनिधि सभा । इस बैठक का विधिवत समापन 17 मार्च को होगा । 13 और 14 मार्च की मुख्य बैठक में देश भर के लगभग 1400 प्रतिनिधि भाग लेंगे। बैठक समापन के बाद ये प्रतिनिधि अपने अपने क्षेत्र में जाकर इस बैठक में पारित प्रस्तावों और कार्य लक्ष्य की संकल्पनाओं से अवगत करायेंगे । जिससे संघ अपनी निर्धारित ध्येय यात्रा में गतिमान रह सके ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संसार के उन विरले संगठनों में से एक है जो अपनी वार्षिक बैठकों में केवल प्रस्ताव पारित करने की औपचारिकता या आदर्श सिद्धांत की संकल्पना व्यक्त करने की औपचारिकता भर नहीं करता अपितु उन्हे आकार देने में पूरी शक्ति लगाता है और समय समय कार्य प्रगति की समीक्षा करता है । इसके लिये क्षेत्र की विशेषता और कार्य की महत्ता के अनुरूप स्वयंसेवक जुटाता है । ताकि जो लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं वे समय सीमा में प्राप्त किये जा सकें। संघ को उसकी इसी कार्यशैली ने उसे संसार में सर्व प्रमुख संगठन बनाया है । यह संघ के स्वयंसेवकों का समर्पण है कि वे विषमताओं और दुष्प्रचार के बीच भी अपने सेवा और संकल्प के कार्यों को स्थापित कर लेते हैं। इसका उदाहरण देश के पूर्वोत्तर और दक्षिण प्रांतों में देखा जा सकता है । इन प्रांतों में न तो हिन्दु जनसँख्या बहुमत में है और न हिन्दी भाषी। फिर भी संघ का कार्य निरंतर प्रगति कर रहा है । इन दुर्गम क्षेत्र में संघ से संबंधित विद्यार्थी परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम और मजदूर संघ ने जो काम को स्थापित किया वह अपने आप में अनूठा है । संघ और संघ का कार्यकर्ता इस बात की परवाह नहीं करता कि उसके बारे में क्या कुप्रचार हो रहा है । अथवा संघ कार्यकर्ता पर प्राणलेवा हमले किये जा रहे हैं । वे अपने लक्ष्य की ओर निरंतर गतिमान रहते हैं । संघ कार्यकर्ता बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक आपदा के समय देखे जाते हैं । संघ पर ये आरोप प्रतिदिन मढ़े जाते हैं कि वह मुसलमानों और ईसाइयों को पसंद नहीं करता पर असम और कश्मीर की उन बस्तियों में जहाँ मुस्लिम और ईसाई आबादी बहुसंख्यक थी, वहाँ प्राकृतिक आपदा में सेवा कार्य केलिये सबसे पहले पहुंचने वाले संघ कार्य करता ही थे । संघ के इस सेवा कार्य को सबने अपनी आँखों से देखा और समाज में विश्वास बढ़ा। यही कारण है आज असम, मिजोरम, नागालैंड जैसे दुर्गम क्षेत्र में भी संघ कार्य का विस्तार हुआ है और स्थापित भी हुआ है । इन प्रांतों में कार्य आरंभ करना साधारण नहीं था । पहले कुप्रचार द्वारा समाज को संघ से दूर रखने का कुचक्र चला और जब कूटरचित कुप्रचार से बात नहीं बनी तो संघ विरोधियों ने संघ के स्वयंसेवकों पर प्राणघातक हमले भी किये । स्वयंसेवकों के बलिदान के समाचार अक्सर मीडिया में आते हैं। पर संघ का कार्यकर्ता अपने प्राणों को दाव पर लगा कर संकल्प को पूरा करता है । सेवा का य। संकल्प दोनों क्षेत्र में देखा जा सकता है । प्राकृतिक आपदा के समय दुर्गम क्षेत्र में किये जाने वाले सेवा कार्यों में भी और सांस्कृतिक राष्ट्र भाव के विरुद्ध कुचक्र चला रहे कुछ तत्वों के प्रभाव क्षेत्र में भी । संघ की दूसरी विशेषता है कि वह अपनी आलोचनाओं की परवाह नहीं करता । और न किसी आलोचना का उत्तर ही देता है । वह अपने सेवा कार्य से समाज में अपना स्थान बनाता है । स्वाधीनता से पहले जहाँ मुस्लिम लीग, मिशनरीज और विदेशी मानसिकता के हिंसक वैचारिक समूह संघ को अपना शत्रु मानते थे चूँकि उनका उद्देश्य भारत में भारत का रूपांतरण करना था, भारत के स्वत्व को समाप्त करना था । उन्हे संघ इसमें संघ वाधक लगता था । चूँकि संघ द्वारा चलाये गये साँस्कृतिक राष्ट्र भाव जागरण और सेवा प्रकल्पों से उनके कुचक्र में गतिरोध आया । इससे स्वाधीनता से पहले संघ पर तीन ओर से हमला हुआ । स्वाधीनता के बाद पहले जनसंघ और अब भाजपा की राजनैतिक उपलब्धियों के लिये भी अब कुछ प्रतिस्पर्धी राजनैतिक दल संघ पर हमला बोलने लगे । इसलिये संघ पर हमलों का सिलसिला बढ़ा । संघ पर होने वाले शाब्दिक हमलों में कभी जातिगत आधार पर काम करने के आरोप लगते, कभी क्षेत्रगत आधार पर । किन्तु कभी किसी मीडिया कर्मी ने संघ को संकीर्णता के दायरे में काम करते नहीं देखा । इसलिये संघ ने कभी ऐसे आरोपों की परवाह नहीं की । संघ के निरंतर विस्तार करने का आधार भी यही है कि उसके स्वयंसेवकों बिना परवाह किये देश के हर कौने में अपने कार्य में जुटे रहते हैं । उनकी सक्रियता और समर्पण से हर समाज का हर वह व्यक्ति प्रभावित हुआ जो उनके संपर्क में आया । इसीलिए संघ का कार्य कभी नहीं रुकता। वह अपने लक्ष्य की ओर निरंतर गतिमान रहता है । इन षडयंत्रकारियों के हमलों से बलिदान हुये स्वयंसेवक के रिक्त हुये स्थान पर पुनः कोई दूसरा स्वयंसेवक सक्रिय हो जाता है । वह भी अपने सिद्धांत और संकल्प के आधार पर काम को आगे बढ़ाता है । इस संकल्पना से ही आज संघ संसार का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन का स्वरूप ग्रहण कर सका । सौ वर्ष पूर्णता की ओर अग्रसर होने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अकेला संगठन नहीं है । इसके समकालीन और इससे पुराने संगठन और भी हैं। पर उनमें से किसी भी संगठन का आज वैसा स्वरूप नहीं है जैसा उनकी स्थापना के समय व्यक्त हुआ था और यदि किसी का है भी तो वह अब सिमटने लगा । सौ वर्ष पुराने कितनों में टूट फूट हुई और कितनों के लक्ष्य बदले, दिशाएँ बदलीं और स्वरूप भी बदल गये । पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की यात्रा में ऐसा कुछ न हुआ । उसने जिस संकल्प से अपनी यात्रा आरंभ की थी उसमें राई रत्ती भी अंतर नहीं आया । संघ पर पर हमले हुये, तीन बार प्रतिबंध लगे निरपराध कार्यकर्ता बंदी बनाए गए, हत्याओं का तो एक लंबा सिलसिला चला पर संघ न तो भयभीत हुआ औरन दिशा बदली । उसके कार्य और स्वरूप का विस्तार अनवरत रहा। संघ की संकल्पना में भारत राष्ट्र के सर्वांगीण परम् वैभव का जो सपना पहले दिन था वह आज भी है । राष्ट्र, संस्कृति और मानव सेवा का जो व्रत पहले दिन था वह आज भी है । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ संसार का अकेला ऐसा संगठन है जिसमें इतनी लंबी यात्रा में भ्रष्टाचार, पदलिप्सा या अनैतिकता का कोई प्रसंग कभी नहींआया । अपवाद स्वरूप भी कोई उदाहरण कभी सामने नहीं आया और न उसकी संकल्पशीलता में कोई गतिरोध आया । उसके कार्य का विस्तार न केवल भारत के कौने कौने में हुआ अपितु दुनियाँ के तीस देशों में भी संघ की शाखाएँ आरंभ हुईं। जबकि भारत के सभी तीस प्रातों लगभग बारह हजार स्थानों 25 हजार से अधिक सेवा-प्रकल्प चलाए जा रहे हैं। सोलह हजार से अधिक सेवा कार्य तो ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित हैं। लगभग साढ़े चार हजार सेवा कार्य वनवासी क्षेत्रों में, लगभग साढ़े तीन हजार कार्य सेवा बस्तियों में और शेष अन्य स्थानों पर चल रहे हैं। यह सब केवल इसलिए संभव हो सका कि संघ प्रत्येक स्तर पर अपने कार्यों की समीक्षा करता है । यह समीक्षा प्रत्येक स्तर पर होती है । बस्ती स्तर से लेकर प्रांत, क्षेत्र और राष्ट्र स्तर तक समीक्षा बैठकें होतीं हैं। इन समीक्षा बैठकों में व्यवहारिक और क्षेत्रीय विशेषता को ध्यान में रखकर लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं। यदि कहीं कोई व्यवहारिक कठिनाई हो तो योजना में उसके अनुरूप संशोधन भी किये जाते हैं। और समीक्षा की यह परंपरा प्रतिनिधि सभा की बैठक में भी है । इसीलिये मुख्य बैठक भले दो या तीन दिन की घोषित हो पर क्षेत्रीय कार्यो समीक्षा राष्ट्रीय पदाधिकारी पहले कर लेते हैं । बैठक प्रतिनिधि सभा की इस बैठक में भी प्रत्येक अनुषांसिक संगठन और उनके द्वारा चलाये जाने वाले प्रकल्प और सेवा कार्य के व्यवहारिक पक्ष की भी समीक्षा की जाने की संभावना है । इसके बाद ही शताब्दी वर्ष की आयोजना को अंतिम रूप दिया जायेगा । इसलिये संगठन यह प्रतिनिधि सभा पिछले वर्षों में संपन्न अन्य प्रतिनिधि सभा बैठकों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण मानी जा रही है ।
इस बैठक में क्या निर्णय लिये जाना है यह तो 17 मार्च को ही स्पष्ट होगा पर इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि आगामी लक्ष्यों की दृष्टि से इस बैठक में देश के सभी प्रखंड स्तर तक संगठन की स्थापना का और देश में सिर उठा रहीं चुनौतियों के बीच आत्मनिर्भर भारत के लिये सामाजिक जागरण अभियान चलाने का संकल्प लिया जा सकता है ।

रमेश शर्मा

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