यदि रसोई को परिवार का कोष कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। यही सत्य है क्योंकि परिवार के सभी सदस्यों का स्वास्थ्य रसोई पर ही निर्भर है। रसोई में पकने वाले जैविक खाद्य पदार्थ जहाँ हमें ऊर्जा प्रदान करते हैं वहीं इन पदार्थों के मिलावटी रसायनिक तत्व हमारा स्वास्थ्य छीन लेते हैं।
आज हर तीसरा व्यक्ति शर्करा, उच्च रक्तचाप, अस्थमा व रक्त अल्पता जैसी बिमारियों से पीड़ित है। इसका मूल कारण हमारा दोषपूर्ण खानपान है। यदि हम थोड़ा सा उद्यम करें तो न केवल अपने स्वास्थ्य को ठीक रख सकते हैं बल्कि बहुत सा धन भी बचा सकते हैं। इसका आसान सा उपाय है – रसोई उपवन।
रसोई उपवन के लिए हमें किसी विशेष स्थान की आवश्यकता नहीं होती बल्कि इसे आसानी से घर की छत पर या बाल्कनी में गमले रख कर बना सकते हैं।
गर्मियों में उगने वाली सब्जियाँ – घीया, तुरई, भिण्डी बैंगन व धनिया पुदिना आदि थोड़े से प्रयास के साथ प्राप्त किए जा सकते हैं। इसी तरह सर्दियों में गोभी, गाजर, पालक इत्यादि आसानी से उगाए जा सकते हैं। इन्हें पूर्ण रूप से जैविक उगाने हेतु इनमें किसी भी प्रकार की रसायनिक खाद व कीटनाशक डालने की आवश्यकता नहीं है। इनके लिए खाद व कीटनाशक रसोई के कूड़े से ही तैयार किए जा सकते हैं।
रसोई उपवन के लाभ :-
- इससे शुद्ध व जैविक सब्जियाँ प्राप्त होती हैं।
- पैसे की बचत होती है।
- छत व खाली पड़े स्थान का सदुपयोग होता है।
- उपवन में काम करने से तनाव दूर होता है।
- बिना पैसे खर्च किए शरीर का व्यायाम हो जाता है।
- घर में पेड़- पौधे लगाने से पंछी भी चहचहाने लगते हैं।
- घर के बच्चों के ज्ञान में वृद्धि होती है।
- बच्चों को अपने हाथ से काम करने की प्रेरणा मिलती है।
- पेड़-पौधे लगाने से वातावरण में ठण्डक पैदा होती है।
- घर के कूड़े का अच्छी तरह से प्रबन्धन हो जाता है।
कूड़ा प्रबन्धन :-
घरों मे आमतौर पर दो प्रकार का कूड़ा पाया जाता है- सूका व गीला। सूखे कूड़े में कागज़, प्लास्टिक, लोहे के पिन, लिफाफे, बोतलें आदि होते हैं। जिन्हें रिसाइकिल कर पुन: उपयोग में लाया जा सकता है अत: इन्हें कबाड़ी को बेच कर कमाई की जा सकती है।
गीले कूड़े में फल और सब्जियों के छिलके, चायपत्ती आदि शामिल होती है। यह भी हमारी कमाई का साधन हो सकता है। प्रयोग की गई चायपत्ती को सादे पानी से धो कर पौधों में डालने से यह खाद का काम करती है। फलों और सब्जियों के छिलकों से केचुएँ की सहायता से खाद बनाई जा सकती है। यह जैविक खाद बहुत ही उपयोगी होती है। इससे पौधे बहुत ही जल्दी बढ़ते फूलते हैं।
पक्षियों को आमन्त्रण :-
पक्षी प्रकृति का महत्वपूर्ण अंग हैं। बनस्पति के बढ़ने फूलने में तो इनका योगदान है ही, मानव के व्यक्तित्व पर भी इनका गहरा असर देखा जा सकता है। भला वह कौन सा बालक होगा जिसने चिड़ियों के पास जा कर उनको पकड़ने की चेष्टा नहीं की होगी? तोते का मानवीय आबाज़ में बातें करना सब को लुभाता है व कोयल की कूक मन को मधुरता से भर देती है। मोर तो सबके आकर्षण का केन्द्र है ही।
हमारा थोड़ा सा प्रयास न केवल इन पंछियों को आसरा दे सकता हे वल्कि हमारे जीवन को भी मधुरता से भर सकता है। फलों के बीजों का उपयोग उन्हें पुन: उगाने व पक्षियों को खिलाने के लिए किया जा सकता है। पक्षियों के आने से घर की शोभा में वृद्धि होती है। और हम अपने आप को प्रकृति से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं।
तापमान में वृद्धि होने पर जलाशयों का पानी सूख जाता है और पक्षी प्यास के मारे इधर उधर भटकने लगते हैं कुछ तो तड़प तड़प कर प्राण ही त्याग देते हैं। यदि किसी भी छायादार स्थान पर कसोरों में पानी भर कर रख दिया जाए तो अनेकों पक्षियों के प्राणों को बचाया जा सकता है। लकड़ी के बने छोटे छोटे घरोदें आजकल बाजार में उपलब्ध हैं या फिर इन्हें थोड़े से प्रयास से घर पर ही तैयार किया जा सकता है। यदि इन धरोंदो को तारों की सहायता से किसी ऊँचे स्थान पर लटका दिया जाए तो पक्षी इनमें घर बना कर बड़े आराम से रह सकते हैं ।
आए हम संकल्प करें कि हम अपने घर को हरित घर बनाएंगे। जिसमें हरे भरे पौधों के साथ रसोई उपवन भी होगा। जिसकी खाद रसोई के कचरे से तैयार की जाएगी। पक्षियों के लिए दाना पानी होगा व हमारे घर में जल व ऊर्जा की बचत की जाएगी।
डा. नीरोत्तमा शर्मा (लुधियाना)
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