निखिल दवे
मुझे लगता है कि सदा निंदा करने वाले ऐसे कुछ पत्रकार स्वयं निंदा और अवसाद से घिरते जा रहे हैं। वे स्वयं किसी एक वाद से जकड़े हैं और दूसरे वाद से जकड़े अपने ही सहकर्मी का गला घोंटने को दौड़ रहे हैं। इस मूर्खता को बंद करिए जनाब। अक्ल का यह अजीर्ण ही असल असहिष्णुता है जो आपको कुंठित कर रहा है। इससे निकलिए, अपने वाद से ऊपर उठकर ज़रा सोचिए कि निंदा के सिवा आप कभी कुछ करेंगे या सिर्फ कुंठा में बैठ कर हमेशा दूसरे पर कीचड़ उछाल कर अपने भी हाथ गंदे करते रहेंगे ?
मित्रवर आदरणीय श्री अनिल सौमित्र जी सालों से एक आग्रह कर रहे थे। हर बार मीडिया चौपाल में आने का उनका निमंत्रण मुझे शर्मिंदा करता था। कभी संकोच में तो कभी चाह कर भी मैं हर साल अनुपस्थित रहा, संकोच यह था कि मेरा मीडिया से कोई सीधा ताल्लुक नहीं है। लेकिन एक कुशल संगठक की तरह अनिल जी का स्नेह और निमंत्रण हर बार बरकरार रहा ।
इस बार यह आयोजन वृहद रूप लेकर महोत्सव के रूप में भोपाल में आयोजित हुआ। अब बचना मुश्किल था, इस बार अनिल जी थोड़ा कड़क हुए, फरमान की तरह कहा कि इस बार नहीं आये तो निमंत्रण सूची से नाम काट दिया जाएगा। मैंने कहा भी कि, मैं न तो TV में खबर देखता हूँ, न अखबार पढ़ता हूँ न ही mobile पर कोई खबरी app वगैरह है, ऐसे में मेरा क्या काम ? लेकिन अनिल जी का और बहुत से मित्रों का आग्रह इसबार स्नेह के आक्रामक रूप से भरा था और आयोजन का विषय ऐसा था जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता को भी उपस्थित होना चाहिए। फिर आयोजन भोपाल में ही था तो कोई बड़ा बहाना भी नहीं था बचने का। इसलिए पहुंच गया।
इस आयोजन से, इसके आयोजकों से, इसके स्वरूप से या किसी भी विषय से किसी को आपत्ति हो सकती है, फिर पत्रकार का तो काम ही आपत्ति लगाना है इसलिए वो भी हताहत हो सकते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि इस तरह के आयोजन नितांत आवश्यक हैं, एक ऐसा स्थान होना ही चाहिए जहां पत्रकारिता को भी कोई दिशा मिले। कुछ लोग एक विशेष मानसिकता के प्रचार का आरोप भी इस आयोजन पर लगाते हैं, यह उनका अधिकार है लेकिन वे लोग इस सत्य को शायद नज़रंदाज़ करते हैं कि इस आयोजन में देश में प्रचलित लगभग हर प्रभावशाली विचारधारा के लोग वहां मंच पर और मंच के सामने प्रतिनिधि के रूप में मौजूद थे। राजनैतिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ पत्रकारिता, प्रशासन व सामजिक संगठनों के वे लोग भी थे जो किसी एक “वाद” से बंधे नहीं थे। उन्होंने कई मुद्दों पर अपनी राय और आपत्ति रखी जो वाकई उनका अधिकार भी है और स्वागतयोग्य भी। बेहतर की गुंजाइश हमेशा रहती है, किंतु मुझे लगता है कि आयोजन को सर्वस्पर्शी व वृहद बनाने के लिए आयोजकों का यह ईमानदार प्रयास निश्चित ही प्रशंसनीय है।
हाँ कुछ ऐसे भी लोग हो सकते हैं जिन्हें न बुलाये जाने पर अंगूर खट्टे लग रहे हों। आप आयोजन का हिस्सा नहीं बन सके तो उसकी आलोचना करने का आपका पूरा अधिकार है, किंतु फिर भी समाज को सकारात्मक दिशा देने वाले मीडिया जगत के ऐसे लोग स्वयं कितने सकारात्मक हैं यह उन महान क्रांतिकारी किस्म के आला पत्रकारों को सोचना चाहिए। क्या ये वही पत्रकार हैं जो असहिष्णुता का आरोप लगाते हैं ? और एक विचारवान आयोजन से इसलिए दूरी बनाते हैं क्योंकि उसके कुछ आयोजक किसी एक विचारधारा से प्रभावित हैं ? अगर आप सिर्फ इसलिए मीडिया महोत्सव की आलोचना करते हैं तो थोड़ा ईमानदारी से सोचिए कि असहिष्णु कौन है ? वो आयोजक जो लगभग हर प्रभावशाली विचारधारा के लोगों को अपनी बात रखने को बुलाते हैं ? या वो थोथे पत्रकार जो कमरे में बैठ कर, social media पर लेनिन, माओ की बातें करके, स्वयं को सहिष्णु बता कर, दूसरे के सकारात्मक काम में हाथ बटाना तो दूर उसकी बात तक नहीं सुनना चाहते।
मुझे लगता है कि सदा निंदा करने वाले ऐसे कुछ पत्रकार स्वयं निंदा और अवसाद से घिरते जा रहे हैं। वे स्वयं किसी एक वाद से जकड़े हैं और दूसरे वाद से जकड़े अपने ही सहकर्मी का गला घोंटने को दौड़ रहे हैं। इस मूर्खता को बंद करिए जनाब। अक्ल का यह अजीर्ण ही असल असहिष्णुता है जो आपको कुंठित कर रहा है। इससे निकलिए, अपने वाद से ऊपर उठकर ज़रा सोचिए कि निंदा के सिवा आप कभी कुछ करेंगे या सिर्फ कुंठा में बैठ कर हमेशा दूसरे पर कीचड़ उछाल कर अपने भी हाथ गंदे करते रहेंगे ?
खैर, आयोजन में बहुत से नए पुराने मित्रों से मिलना हुआ। बहुत अच्छे मन से जुटाई गई व्यवस्थाओं के लिए भी आयोजकों को बहुत शुभकामनाएं। आये सुझावों को गंभीरता से लेते हुए यह महोत्सव और वृहद हो और असरकारक हो इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अनिल जी और मिडिया महोत्सव की टीम को बधाई ।