अभी अभी माँ दुर्गा की विराट पूजा बड़े ही भक्ति भाव से संपन्न हुई। माँ की पूजा के साथ साथ बुरी प्रवृत्ति वाले और बुरे कर्मो वाले ‘लंकाधीश रावण’ का भी अंत हो गया, अच्छाई ने बिरै के ऊपर जित हासिल कर ली और इसी तरह दशहरा का पावन-पवित्र त्यौहार भी खुशाहाली के साथ संपन्न हुवा। वैसे तो नवरात्रि के ९ दिन (नवरात्री) बहुत ही शुभ और मंगल माने जाते है, ९ दिनों में माँ का वास्तव और माँ का आशीर्वाद हर कोई अपने अपने तरीके से अनुभव करता है। इस साल की नवरात्री सच में मेरे लिए और विशेषत: बाल विकास के बच्चों के लिए बहुत ही मंगल दाई रही, आनंद और उल्हास से भरी हुई रही और इसकी खास वजह रही हमारी ‘बराबर’ की यात्रा। मुझे ठीक से पता नहीं कि ‘बराबर’ यह सदर है तहसील लेकिन लगता है कि यह जहानाबाद जीले का एक अंचल है। बिहार कि राजधानी पटना से दक्षिण कि ओर करीब ११० किमी दुरी पर जहानाबाद ओर गया जिले के बीच दाहिनी ओर करीब १५ किलोमीटर दूर ‘बराबर’कि खूबसूरत पहाड़ियां विराजित है।
ये प्रवास वर्णन एक शिक्षक द्वारा लिखा है। पटना में रहते समय वो एक संस्था से जुड़े थे। वर्त्तमान उनका वास्तव्य कोलकोता में है। पर उनोने पटना के वो संस्था से अपना नाता जारी रखा है चलो हम सब उनके साथ बिहार के बराबर के गुफ़ायो की दर्शन करते है साल दुर्गा पूजा के लिए मैं पटना जाता हु इसीलिए वहां जेने के बाद कुछ घूमने-फिरने की योजना मैं बना रहा था लेकिन पूजा के दिनों में बालविकास से बहार जाना उचित नहीं होता तो भी एक छोटा सा योजना होनेसे ठीक ही रहेगा यह मेरा विचार था। वैसे तो बिहार के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण दर्शनीय स्थलोंको जैसा की बोधगया नालंदा , राजगीर , पावापुरी इन जगहोंपर पहलेही घूमकर आ चुके थे। इसी लिए ऐसी जगह दुबारा जानेका ना ही कोई प्रयोजन था ना कोई इच्छा। इसीलिए बालविकास के बच्चों को नई जगह घुमानेकी इच्छा मेरे मन में हुई और ‘बराबर’ से बेहतरीन और कोई जगह मेरे मन में नहीं आई और ‘बराबर’ जाना मैंने ठीक समझा । “बराबर” घूमने जाने के योजना के बारे में सबसे पहले मैंने सुजाता के साथ बातचीत की। और उसके बाद बाकी बच्चों से इस विषय पर चर्चा हुई थी। जैसे की मुझे उम्मीद थी, सुजाता तुरंत राज़ी हो गई और फिर सुजाता के साथ बात करकर आगेकी योजना निश्चित किया गया और सुजाता के कहनेके अनुसार ही कक्षा ७ के बाद वाले बच्चों को लेकर जाना तय हुआ , और सभी बच्चों से ५० रूपयें लेना भी तय किया गया। जब हम दोनों यह योजना बना रहें थे उस समय मैं कोलकाता में था और सुजाता पटना में थी इसीलिए कितने बच्चें आयंगे और सब को मैसेज साइज़ देंगे यह सब जिम्मेवारी सुजाता की थी और यहाँ लिखते हुए मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है की उसने अपनी जीम्मेवारी बहुत बहुत खूब निभाई ‘एक्सीलेंट जॉब डन बाय सुजाता। दुर्गा पूजा अटेंड करने के लिए प्लान के अनुसार मैं १३अक्टूबर २०१८ शनिवार सुबह लगभग ७:३० बजे संसथान में पहुंचा। सुजाता के कहने के अनुसार लगभग १० बजे सभी बच्चे हमसे मिलने बाल विकास केंद्र में आने वाले थे। हमें इस बारे में तो पहले ही पता चुकी थी। हम आराम से तैयार होकर योजना के अनुसार १० बजे के करीब ऑफिस चले गए और हरिशंकरजी (जो संसथान के प्रमुख थे) बात करने लगे और बच्चो की राह देखने लग। ११ बजे के आस पास सभी बच्चो का ऑफिस में आना हुआ और इसके बाद हमेशा की तरह हास परिहास और मौज मस्ती हुई। हमेशा की तरह इस बार भी हमारे आने से बच्चे बहुत खुश दिख रहे थे और बहुत बातें भी हो रही थी, परन्तु बच्चो की बातों से मेरे आने की ख़ुशी के साथ साथ बाल विकास में जो हो रहा था उसके प्रति का दुःख दर्द भी साफ़ झलक रहा था। संस्थान में और विशेषत: बल विकास के एडमिनिस्ट्रेशन और पढ़ाई में आई हुई गिरावट केबच्चों को बारे में हमे बताने से कोंईभी बच्चा नहीं चूक रहा था। मैं उन सब बातों से भलीभांति वाकिफ था लेकिन मैं उन सब बातों की लिए मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि अब मैं वहां पर एक मेहमान मात्र ही था। सब बातों को भूल कर हम लोग हमारे ‘बरबर’ घूमने जाने के बारे में, सोचने लगे और उसी सिलसिले में राधा और प्रियंका को कॉल किया गया क्योंकि आज तक हमलोग जहा पर भी घूमने गए हैं लगभग सभी जगह राधा, नेहा, प्रियंका , राजेश , सोम , ममता, नीतू इन बच्चों जी देखा हैं शायद उतने करीब से और किसीने ही नहीं देखा है , देवेंद्रजी (संस्थान के प्रथम संचालक ) ने भी नहीं और मैंने भी नहीं। बालविकास के हर उतर-चढाव कों ये लोग नजदीक से देखे है। जो भी हो घूमने चलने के बैमे राधा से पूछागया तो उसने क्लास के चलते हम्म लोगों के साथ आने के लिए न कह दिया, पर प्रियंका वे , जैसे की मुझे उम्मीद थी, आने के लिए हा कह हिय। ‘बराबर’ जाने के लिए हमें पटना से गया की ओर पैसेंजर ट्रेन से जाना था ओर इसीलिए प्रियंका से इस बारे में डिटेल्स में पूछा गया क्योंकि प्रियंका कॉलेज जाने के लिए हमेसा पटना से गया ट्रेनसे जाती है।
प्रियंका के कहने के अनुसार ही सुबह ६.३० बजे वाली पैसेंजर से जाना तय हुवा बच्चों के नसीब ओर भगवन की असीम कृपा से उस दिन राजगीर (दूसरी एक संस्था ) से की गाड़ी पटना में आई हुई थी तो फिर उसी गाड़ी से पटना जंक्शन जाना तय हुआ। जो बच्चें बालविकास के नजदीक रहते है उन सभी को सुबह बालविकास में पहुँचाने के लिए कहा गया और जॉन बच्चें लोहानीपुर में रहतें है उन्हें वैशाली गोलंबर के पास आने के लिए कहा गया। योजना के मुताबिक ही बच्चें बालविकास में आए और तब तक राधा और नेहा भी आने के लिए फेयर हो गई थी , और बाकी बच्चों कोप वैशाली गोलंबर से रिसीव करके हु लोग पटना जंक्शन पहुँच गए । मुझे लगता है हम सब मिलकर करीब ५० लोग रहे होंगे। स्टेशन पहुंचने के बाद ट्रेन का टिकट निकला गया और ६.३० बजे वाली पैसेंजर ट्रेन से हमारी यात्रा प्रारम्भ हुई
वह रविवार याने छुट्टी का दिन था और इसी के चलते ट्रेन में ज्यादा भीड़ नहीं थी और लगभग सभी बच्चों को बैठने की जगह मिल ही गई। हमेशा की तरह इसबार भी रौनक मस्ती कर रहा था तो प्रियंका के डाटने से वो ठीक हो गया और अपनी जगह बैठ गया। ठीक समय पर मतलब ६.३० में ट्रेन स्टार्ट हो चुकीं थी और हम लोग हर्ष-उल्लास के साथ बराबर की और चल पड़े थे। हममेसे कितने लोग तो मन से बराबर की पहाडियोंपर पहुंच चुकें थे। ठंड का मौसम था, और मौसम ने आप सौम्य रूप ही प्रकट किया था, मीठी ठंड का आभास सभी की हो रहा था, हलके कोहरे लोन भेदते हुए हमारी ट्रेन गे की और बढ़ रही थी और अभी तो उसने अच्छी-खासी रफ़्तार पकड़ ली थी लग रहा था मानों हसाब की तरह ट्रेन भी बराबर जानेके लिए उत्सुक हों। कुछ बच्चों को छोड़ दे तो, बाकि सभी का यह बराबर पहली बार ही जाना हो रहा था। हममें से महेश और प्रियंका ही इस रस्ते को बलि भाटी जानते थे और बांकी सबका ज्ञान तो नाहीके बराबर ही था । प्रियंका की सहेली ज्योति (मोटी), जो प्रिंका के साथ गया में ANM पढ़ रही थी, जहानाबाद में रहती थी और वो भी जहानाबाद से हमलोगों के साथ बराबर में आने वाली थी और हुवा भी वैसे ही। जहाँनाबाद से ज्योति हमारे साथ ही रही। यहाँ ज्योति के बारेमे थोड़ा सा बताना अच्छा रहेगा नहीं तो वो ज्योति के साथ अन्याय किए जैसा ही होगा। शायद ज्योति से ये हमारी पहली ही मुलाकात थी। हाँ , कुछ बच्चें ज्योति से पहले जरूर मिले थे, उसे जानते थे लेकिन ज्यादा तर बच्चों के लिए ज्योति दीदी से पहली ही मुलाकात ही थी और मैं भी उनमे से एक था। उसे देखकर, उससे बाटे कराकर यही पता चल रहा था की ज्योति बहुत ही साहसी लड़की है, और उसे समाज के अच्छे-बुरे का काफी अनुभव भी है, प्रैक्टिकल नॉलेज तो उसमे खूब है। किस समय क्या कदम उठाना है ये भी ज्योति खूब अच्छे से जानती है। जीवन में बहुत कम् लॉन्ग ही ऐसे होते है जो खुद को काम दिखाकर , खुद थोड़ा तकलीफ सहकर दुसरो को खुश कर सकते है, करते है, और उसमे भी लडकिया तो बेहद ही काम होती है। लेकिन हमारी ज्योति सबसे अलग थी। उसे देखकर कोई भी बोल सकता था की ज्योति खाते-पीते घर की लड़की है और उसका उसने खूब फायदा उठाया है , जब चाहे, जो चाहे वो खाई है। उसके इसी ख़ुश मिजाज अंदाज का, रुबाब का मजा महेश और बाकि बच्चें जो उसे पहले से जानते थे, ले रहे थे और ज्योति भी वो कमेंट्स (व्यंग) वो हास्-परिहास खूब एन्जॉय कर रही थी, और वो भी उसी तरह बाकि सबका मजाक उड़ा रही थी। और वो हास्-परिहास उस दिन के माहौल को पूर्ण रूप से शोभा दे रहा था सूट कर रहा था , मानो दूध में शक्कर घोली जा रही हो।
तो जहानाबाद तक का सफर खूब हो अच्छे से बिट चूका था और अब हमारे साथ ज्योति भी ज्वाइन हो गई थी। बराबर की लिए किस स्टैशन पर उतरना है यह लेकर हम सब लोग थोड़ा भ्रम में थे किसी को भी ठीक तरह से पता नहीं था क्योंकी ट्रेन से बराबर जाने का सभी लोगोका यह पहला मौका था। साथ चलते पैसेंजर लोगों ने हमे एक नेर स्टैशन पर उतरने की सलाह ही और हम लोग भी उअतरने के लिए तैयार हो गए, लेकिन जैसे ही हम लोग उअतरने लगे तो वहीँ पर एक समस्या कड़ी हो गई, हम लोग पैसेंजर से जा रहे थे जो की बिच के स्टैशन पर बहुत ही काम समय के लिए रुकती थी और यही बात हम लोगों के ध्यान में नहीं आई। सब मिलके हैं लोग लगभग ५० के ऊपर ही थे पर तो और उसमे छोटे बच्चे और लड़किया ही ज्यादा थी तो एकसाथ इतने बच्चों का इतने कम समय में स्टैशन पर उतरना असंभव ही था। हम में से कुछ बच्चें जल्दी जल्दी नेर स्टैशन पर उतर ही गए और ज्योति भी उन बच्चों के साथ उतर गई , लेकिन बहुत से बच्चें कम समय के चलते उतर ही नहीं पाए और ट्रेन स्ट्रार्ट हो गई। न उतरने वालो में मई भी था क्योंकि सभी बच्चें उतरने के बाद ही मुझे उतरना था। पर उस चलती ट्रेन में भी मैंने हाथ पकड़कर सरस्वती को नीचे उतर ही दिया। वो सभी के लिए एक अद्भुत अनुभव था। अब हम बाकि बचे हुए लोग सीओ की ट्रेन में ही थे, अगले स्टैशन , बराबर स्टैशन , पर उतरकर फिर से वापस यही नेर स्टैशन पर आने की योजना की गयी क्योंकी इसी नेर स्टैशन से हमे बराबर की पहाड़ियों के लिए जाना था। योजना के अनुसार हम लोग अगले बराबर स्टैशन पर उतर गए और फिर वापस जाने के लिए lऑटो की तलाश में चल पड़े। हम ऑटो की तलाश कर ही रहें थे की प्रियंका को ज्योति का मैसेज आया की एक पैसेंजर गया से पटना की और आ रही है उसी में वापस आने से अच्छा रहेगा और पैसा भी कम लगेगा। हम लोग वैसा ही किए। गया-पटना पैसेंजर में बैठ कर वापस उसी नेर स्टेशन पर आ गए जहा ज्योति बाकि बच्चों के साथ कड़ी थी और उसके स्वाभाव के अनुसार बच्चों के साथ मस्ती कर रही थी और इतनी घुल मिल गई थी मनो कितने दिनों से वो सब बच्चों को पहचानती है। यह एक अच्छे मन की निशानी है, अच्छे दिल वालों को लिए पराए लोगों के साथ तुरंत घुल-मिल जाना आम बात होतीं है। ऐसे दर्या-दिल , हसमुख लोंग एक बार भी मिल जाय तो ऐसा लगता है की इनसे हमेशा दोस्ती बनी रहे। ज्योति उसका जीता जगता उदहारण है। आज ज्योति, “हमारी ज्योति ” से “पराई ज्योति ” हो चुकी है “ज्योति – कुमारी” से “ज्योति-देवी” हो चुकी हैं , एक शादी-शुदा, घर -गृहस्ती सँभालने वाली समजदार बहु बन चुकी है। ज्योति फिलहाल दिल्ली में रहती है। मुझे उम्मीद है की ज्योति का वो हसमुख और मिलनसार स्वभाव आज भी वैसा ही होगा और आशा है, उम्मीद हैं की उसके नये घर में भी उसके इस स्वभाव का खूब आदर हूवा होगा और नए घर के लोगों वे ज्योती को ख़ुशी-ख़ुशी ही अपनाया होगा
तों वापस नेरा स्टेंशन पर आने के बाद हम लोग २ ऑटो रिजर्व किय और बराबर की और चल पड़े। नेरा स्टेशन से बराबर की पहड़िया लगभर १० से १२ कमदूर होगी। रास्ता काफी अच्छा था और हरे भरे खेत खलियानों से होकर जा रहा था। दूर दूर चावल के लहलहाते – खिलखिलाते खेत मन को मोहित कर रहें थे। नेरा से बराबर आने का वक्त कैसे चला गया हमे पता ही नहीं चला और हम लीग बराबर की पहाड़ियों के एकदम करीब पहुंच गए , बराबर के क़दमों के पास आ गए। यहाँसे आगे की यात्रा हमे पैदल ही करनी थी, जो की इस पूरी बराबर – यात्रा की खूबसूरती थी। करीब से देखने से बराबर की पहड़िया कुछ ज्यादा ही मोहक , जीतनी प्यारीं उतनी ही गंभीर प्रतीत हो रही थी। अगर हम यहाँ नहीं आते तो शायदे खूबसूरत पहाड़ियों के बारेमे हमारा अधूरा ही रह जाता।
बराबर की पहाड़िया बिहार के स्वर्णिम इतिहास की साक्षी है। जितना बिहार के भैगोलिक दृष्टि से इन पहाड़ियों का महत्त्व है उससे ज्यादा इनका मूल्य धार्मिक और ऐतिहासिक हैं। ‘ बराबर ‘ की पहाड़िया आपको बुद्ध-काल की याद दिलाती हैं। यहाँ सम्राट अशोक के कल में पहाड़ों कोण तराशकर बनाई हुई मानव निर्मित अतुलनीय गुफाएं हैं। प्राचीन बुद्ध काल में इन पहाड़ियों पर बुद्ध के त्यागी अनुयायिओं का भिक्कू ओंका निवास हुवा करता था। न जाने कितने ही महान बौद्ध भिखुओंने , संत महात्माओंने इस पर्वत पर तपत्या कर निर्वाण या मुक्ति कोण प्राप्त किया होगा। महान सम्राट अशोक ने यहाँ पर जान कुछ गुफाओ का निर्माण करवाया था वो अपने आप में वास्तु सही;प का एक अद्भुत और उत्कृष्ट नमूना हैं। उस अभ्दुत और उत्कृष्ट नमूना हैं। उस अभ्दुत और विस्मयकारी वास्तु का वर्णन यहाँ संभव नहीं हैं, उसे समजने के लिए उसे एक बार जरूर देखना होगा। बराबर की पहाड़िया ग्रेनाइट पत्थर की बनी हुई हैं , जो की अपने आपमें एक कीमती पत्थर होता हैं।
– प्रसाद महाराज